Wednesday, September 28, 2011

  स्त्री तेरी यही कहानी......

     भारत मे महिलाव का दिन प्रतिदिन रूप बदल रहा है वह अपने परंपरागत जीवन से निकाल कर एक नये जीवन मे प्रवेश कर रही है चूला चौका के अलावा अब उसके जीवन में  कारोबार भी शामिल हो गया है | लेकिन जहा एक ओर महिलाओ का यह रूप देखने को मिल रहा है वही आज भी ऐसी महिलाओ कि कमी नही है जो पहले के समय कि ही तरह आज भी जीवन बिता रही है वही जीवन जिसे शहरो कि महिलाये तो पीछे छोड चुकी है लेकिन दूर के गाव मे आज भी महिलाओ  की  वही स्थिती है जो पहले थी जिन्हे अपने पति का नाम भी नही लेना होता था| और जिसके लिये उन्हे किसी और कि मदद लेनी पडती थी |            
                
           आज भी भारत मे ऐसे कई देश है जहा महिलाओ  की स्थिती मे कोई सुधार नही आया है उनके लिये आज और कल मे कोई अंतर नही आया है उनके लिये दुनिया आज भी वही है जो और सबके लिये कई साल पहले ही बदल गयी है| उन औरतो के लिये क्या सोनिया गांधी और क्या प्रतिभा सिंह पाटिल, बस एक नाम मात्र ही है जिनका नाम शायद कभी गळती से सुन लिया हो | ये महिलाये न तो स्वयं ही अपने बारे मे सोचती है और न कोई और |
               
             शहरो में भले ही आज महिलाये आगे बढ़ गई हो और हर छेत्र में  दिखाई दे रही हो लेकिन कही न कही उनकी सच्चाई दिखाई दे ही जाती है,फिर वह चाहे जिस रूप में हो | कही आरुषि हत्याकांड तो कही जेसिका ऐसे न जाने कितनी ही मामले आये दिन सुनाई देते है ऐसा ही अब एक और मामला सामने आया है भवरी देवी का  देखना ये होगा की क्या भवरी देवी के साथ भी इन्साफ होगा या बस महिलाओ की यही कहानी चलती रहेगी..............       

                      

Monday, May 02, 2011

चौपाल से फेसबुक

        गांवो का नाम सुनते ही गाँव से जुडी हर वो चीज आँखों के सामने से गुजर जाती है जो हमने वहां कभी देखी थी वो लहलहाते खेत,....... शाम को वापस आते गाये भैसों के गले में लगे घुघरूओ की आवाज़े,......खेतो से वापस आते किसान ऐसी ही न जाने कितनी ही यादे आँखों में आ जाती है उनमे से ही एक गाँव की वो चौपाले भी है जिन्हें अब के लोग देखने के लिए तरस जाते है                                                                      
                  चौपाले ही थी जो लोंगो को एक दुसरे से जोडती थी और लोंगो पर विश्वास जागाती थी......... लोग एक दूसरे के साथ अपने दुःख सुख बांटते थे और अपने काम से जुडी हुई बातो के अलावा मनोरंजन भी करते थे........बिरहा और आल्हा की ताने छेड़ कर दिनभर की थकान दूर करके पहेलिया भी बुछाया  किया करते थे........ इन चौपालों से ही लोंग एक गाँव की बात को दूसरे गाँव तक जान पाते थे
                  
              अब तो बच्चो को चौपाल का नाम तक नही पता है कि वह होता क्या है............... इस नये इंटरनेट के युग में जब से फेसबुक का आगमन हुआ है तब से इसने लोंगो को एसा जकड़ा है कि लोग साथ रहते हुए भी यही कहते है कि फेसबुक पे बात करेगे................. ये भी लोगो को जानने का एक तरीका ही है लेकिन जो बाते चौपाल में कि जाती थी वह फेसबुक पर नही हो सकती.............जो अपनापन उसमे था वह आज के फेसबुक में नही है और न कभी होगा . 

Sunday, April 24, 2011

मजबूरी के मजदूर

          भारत की सभ्यता एवं संस्कृति के विषय में यह बिना किसी विवाद के स्वीकार किया जाता है  कि वह संयुक्त राज्य-अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशो की सभ्यता से बहुत पुरानी है, भारत आजादी के बाद से नई उचाईयो को छूता चला जा रहा है और इतना आगे बढ़ता जा रहा है कि जिसे पकड़ना बहुत मुस्किल है लेकिन इसी देश में एक एसा वर्ग है जो पहले भी वही था और आज भी वही है जिसके लिए विकास जैसे शब्द का कोई मतलब नही रह गया है विकासशील देश कहे जाने वाले भारत में जितनी संख्या अमीरों की है उससे कही ज्यादा गरीब बसते है और उन गरीबो में भी उस वर्ग की गिनती ज्यादा है जो अपनी दो जून की रोटी जुटा पाने मे असमर्थ है,जिसके लिए देश का विकास कोई माइने नही रखता                                                                              
            मजदूर, जिसे अपनी रोजमर्रा का कोई पता नही होता फिर भी वह रोज सुबह उठकर उसी भीड़ में आ जाता है जहा वह एक दिन पहले खड़ा था मन में बस एक ही चिंता की आज काम मिल पायेगा की नही,आज घर में चूल्हा जलेगा की नही आये दिन सरकार परियोजनाए बनाती है और उन परियोजनाओ का क्या परिणाम होता है यह किसो को बताने की जरूरत नही है ऐसी ही एक परियोजना इस समय भी चल रही है और उसमे कितने घोटाले हो रहे है यह अखबारों के पन्नो से पता चलता रहता है
            
            मनरेगा जिसका पहला नाम नरेगा था जिसमे मजदूरों की सौ दिन का रोजगार पक्का है रोजगार गारंटी योजना सरकार ने तो सौ दिन का रोजगार पक्का कर दिया लेकिन बाकी दो सौ पैसठ दिन क्या भूखे मरने की गारंटी

Friday, April 22, 2011

नारी बिन विज्ञापन न होय

नारी जिसे पहले के समय में देवी माना जाता था और वह लक्ष्मी का स्वरूप होती थी जिनके बिना कोई भी अनुष्ठान पूरा नही होता था वही नारी आज ऐसी हो गयी है जिसको पहचानना मुश्किल होता जा रहा है आज का दौर तेजी से बदलते नैतिक मूल्यों का है इस  युग में कल तक जो कुछ वर्जनाओं के घेरे में था उसे आज स्वीकार कर लिया गया है अच्छाई-बुराई के पैमानों में निरंतर परिवर्तन हो रहा है  आज अजीबो- गरीब चीजो के अजीबो- गरीब विज्ञापन देखे जाते है  मिमिक्री करते सर्कस के जोकर की तरह हाथ पाव  नचाते मुह बनाते करतब करते जवान स्त्री पुरुष बूढ़े बुढ़िया और बच्चे तक भी सबकी सिरकत करते है उनमे विज्ञापन के छेत्र नारी के स्वरूप में क्रांति कारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है आज से चार दशक पूर्व किसी महिला का बाल कटवाना, लिपस्टिक लगाना, जींस, टी शर्ट जैसे परिधान पहनना अशिस्ट माना  जाता था  किन्तु वर्तमान में यह आम बात हो चली है आये दिन नये- नये विज्ञापनों में स्त्रियों के नये- नये रूप देखने को मिलते है



इस समय स्त्रियों का जो रूप  सबसे ज्यादा आश्चर्य कर रहा वह  रियलिटी शो और क्रिकेट के मैदान पर देखा जा सकता है जहा पर वह अपने फूहड़ पन का परिचय देते हुए नजर आती है और इसमें वह वो सब भी कर  जाती है जो शायद ही किसी को पसंद आता हो, लेकिन वह उसमे इतनी ज्यादा व्यस्त होती है की वह अपनी तहजीब को भी भूल जाती है  और वह सब करती है जो उसे नही करना चाहिए   इस समय चल रहे आई.पी.एल.को ही ले लीजिये किसी भी खिलाड़ी चौका  या छक्का मारने पर चीयर गल्स एसे नाचती है की कोई किसी की शादी में भी एसे नही नाचता होगा क्या उनके न नाचने से खिलाड़ी खेलना बंद कर देगे? रियल्टी शो में अगर राखी सावंत अपनी बेहुदा एक्टिंग नही करेगी तो क्या वह नही चलेगा?तब भी चलेगा लेकिन वह इस तरह के कारनामे कर के दुनिया में अपनी एक अलग  पहचान बना रही है लेकिन उनकी पहचान किस तरह की बन रही है या तो सब जानते है



    सूरज बिन  उजाला होए ,रात बिन अँधेरा होए
       बादल  बिन बरसात होए, लेकिन नारी बिन  विज्ञापन न होए

Saturday, April 09, 2011

anna hi anna

चारो तरफ अन्ना ही अन्ना की गूंज है और हो भी क्यों ना अन्ना हजारे ने काम ही ऐसा किया है जो हर हिन्दुस्तानी सोचता तो था लेकिन कभी आवाज नही उठाई हर व्यक्ति इस भ्रष्टाचार  से परेशान है और इतना ज्यादा परेशान है कि अन्ना हजारे कि एक आवाज पर लोग हजारो कि संख्या में अन्ना के साथ हो गए